यह पुस्तक भारतीय संविधान के ऐतिहासिक सच, तथ्य, कथ्य और यथार्थ की कौतूहलता का सजीव चित्रण करती है। संविधान की कल्पना, अवधारणा और उसका उलझा इतिहास इसमें समाहित है। घटनाएँ इतिहास नहीं होतीं, उसके नायक इतिहास बनाते हैं। 1920 से महात्मा गांधी ने स्वाधीनता आंदोलन की मुख्यधारा का नेतृत्व किया। उन्होंने ही स्वराज्य को पुनर्परिभाषित किया। फिर संविधान की कल्पना को शब्दों में उतारा। इस तरह संविधान की अवधारणा का जो विकास हुआ, उसके राजनीतिक नायक महात्मा गांधी हैं। वे संविधान सभा के गठन, उसे विघटित होने से बचाने और सत्ता हस्तांतरण की हर प्रक्रिया में अत्यंत सतर्क हैं। उन्होंने हर मोड़ पर कांग्रेस को बौद्धिक, विधिक, राजनीतिक और नैतिक मार्गदर्शन दिया। संविधान के इतिहास से पता नहीं क्यों, इसे ओझल किया गया है। ग्रेनविल ऑस्टिन ने जो स्थापना दी, उसके विपरीत इस पुस्तक में महात्मा गांधी की नेतृत्वकारी भूमिका का प्रामाणिक विवरण है। पंडित नेहरू बड़बोले नेता थे। खंडित चित्त से उनका व्यक्तित्व विरोधाभासी था। संविधान के इतिहास में वह दिखता है। इस पुस्तक में उसके तथ्य हैं कि कैसे उन्हें अपने कहे से बार-बार अनेक कदम पीछे हटना पड़ा जब 1945 से 1947 के दौरान ब्रिटिश सरकार से समझौते हो रहे थे। सरदार पटेल ने मुस्लिम सदस्यों को सहमत कराकर पृथक् निर्वाचन प्रणाली को समाप्त कराया, जिससे संविधान सांप्रदायिकता से मुक्त हो सका। इसे कितने लोग जानते हैं! डॉ. भीमराव आंबेडकर ने उद्देशिका में बंधुता का समावेश कराया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा का भरोसा उन झंझावातों में भी विचलित होने नहीं दिया। संविधान की नींव में जो पत्थर लगे उन्हें बेनेगल नरसिंह राव ने लगाया, जिस पर इमारत बनी। उस इतिहास में एक पन्ना ‘राजद्रोह धाराओं की वापसी’ का भी है, जिसे असंवैधानिक संविधान संशोधन कहना उचित होगा। पंडित नेहरू ने यह कराया। यह अनकही कहानी भी इसमें आ गई है।रामबहादुर राय
1946 में गाजीपुर, उत्तर प्रदेश में जन्म। लिख-पढ़कर औपनिवेशिक राज्यव्यवस्था में परिवर्तन के लक्ष्य से 1979 में पत्रकारिता की राह ली। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से (अर्थशास्त्र) में एम.ए.। राजस्थान विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पोस्टग्रेजुएट डिप्लोमा। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा, मध्य प्रदेश के कला संकाय के अंतर्गत डी.लिट. की मानद उपाधि। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में राष्ट्रीय सचिव का दायित्व निर्वहन किया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा से बाँग्लादेश मुक्ति संग्राम में सक्रिय रहे। 1974 के बिहार आंदोलन में संचालन समिति के सदस्य रहे, उसी आंदोलन में पहले मीसाबंदी; इमरजेंसी में भी बंदी रहे। ‘हिंदुस्थान समाचार’, ‘जनसत्ता’ और ‘नवभारत टाइम्स’ में रहे। जनसत्ता में संपादक, समाचार सेवा का दायित्व निर्वहन किया। ‘प्रथम प्रवक्ता’ व ‘यथावत’ पाक्षिक के संपादक रहे। वर्तमान में हिंदुस्थान समाचार बहुभाषी न्यूज एजेंसी के समूह संपादक और सदस्य, निदेशक मंडल। ‘यथावत’ हिंदी पाक्षिक में ‘अभिप्राय’ स्तंभ। अध्यक्ष, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र; कुलाधिपति (चांसलर), श्री गुरुगोविंद सिंह ट्राई सेंटेनरी विश्वविद्यालय (एस.जी.टी.यू.); सदस्य, राजघाट गांधी-समाधि समिति; सचिव, अटल स्मृति न्यास; ट्रस्टी, प्रज्ञा संस्थान; प्रबंध न्यासी, प्रभाष परंपरा न्यास; चेरयमैन और ट्रस्टी, सोशल एंड पॉलिटिकल रिसर्च फाउंडेशन (एस.पी.आर.एफ.); सदस्य, नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाईब्रेरी सोसायटी; ट्रस्टी, कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट।
पुस्तकें : ‘रहबरी के सवाल’, ‘मंजिल से ज्यादा सफर’, ‘शाश्वत विद्रोही राजनेता आचार्य जे.बी. कृपलानी’, ‘नीति और राजनीति’। अनेक पुस्तकों का संपादन। पद्मश्री सहित अनेक सम्मान।